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मेंडल का नियम – Mendal Ke Niyam अनुवंशिकता के नियम

मेण्डल के नियम Mendal Ke Niyam से सम्बन्धित SSC, MPPSC Pre And Mains तथा अन्य एकदिवसीय परीक्षा मे कुछ प्रश्नो को इस प्रकार से पूछा गया था जिसका ज्ञान बहुत ही कम विद्यार्थियो को था तो आज हम इस लेख मे सम्पूर्ण मेण्डल से सम्बन्धित पूरी जानकारी लेकर आए है, जिससे आपको परीक्षा मे मदद मिल सके साथ ही साथ Biology से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य को नीचे ध्यान पूर्वक करें।mendal ke niyam

Mendal Ke Niyam

ग्रेगर जाँन मेण्डल प्रथम आनुवांशिकीवेता थे ,इन्हे आनुवांशिकी के जनक के रूप में जाना जाता है। इन्होंने वंशागति के मूल नियम बनाकर आनुवांशिकी की नींव डाली। मेण्डल ने अपने संकरण प्रयोगोंके लिए उद्दान मटर को चुना तथा उसके 7 विपर्यासी लक्षणों  का अध्ययन किया।

अपने प्रयोगों के प्रारम्भ में मेण्डल ने चुने हुए पादपों में स्व-परागण की क्रिया बार-बार कराकर, समान लक्षणों वाली की सन्ततियों से शुध्द नस्ली पादप प्राप्त किये।

Mendal ki Khoj

सन् 1900 में हाँलैण्ड के ह्गो डी व्रींज जर्मनी के कार्ल काँरेन्स तथा आश्ट्रिया के एरिक वाँन शेरमैक ने मेण्डल द्वारा  पाए गए निष्कर्षों को पुनः खोजा। मेण्डल द्वारा प्राप्त निष्कर्षों को काँरेन्स ने आनुवांशिकी के  नियमों के रूप में प्रस्तुत किया।

Mendal LWA in Hindi

  1. मेण्डल ने एक समय में केवल एक ही लक्षण की वंशागति का अध्ययन  किया था।
  2. उन्होंने केवल आनुवांशिक रूप से शुद्ध पादपों का चयन किया. जिसकी पुष्टि उन्होंने अगली पीढियों के पादपों से स्व-परागण परीक्षण द्वारा की।
  3. मेण्डल ने अपने प्रयोगों का F2 एवं  F3 एवं आगे की पीढ़ियों तक अध्ययन किया था।
  4. मेण्डल ने कुछ लम्बे और कुछ छोटे पादपों के पुंकेसर काट दिए. जिससे कि इन पादपों में स्व-परागण न हो।
  5. अन्य लक्षणों से मिलने की सम्भावना से बचाव के लिए मेण्डल ने शुध्द लक्षण के पादपों को बगीचे में अलग-अलग बोया।

मेंडल के नियम से प्रायोगिक पदार्थ का चयन

  1. मटर का पादप एक वार्षिक पादप है। इसका जीवन-चक्र अल्पकालीन होता है  इससे कम समय में अनेक पीढ़ियों का अध्ययन किया जा सकता है।
  2. इसके पुष्प द्विलिंगी(उभयलिंगी ) होते हैं अर्थात् नर एवं मादा जननांग एक ही पुष्प मे ं होते है। पादप मुख्यतया स्वयं परागित होते है।
  3. इसे आसानी से उगाया जा सकता है
  4. स्व-निषेचन के कारण मटर के पादप समयुग्मजी होते है। अतः पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसके पादप  शुध्द लक्षण वाले बने रहते हैं।
  5. मटर के पादपों में अनेक विरोधी लक्षण होते है।
  6. संकरण द्वारा प्राप्त सन्तति पूर्ण उर्वर होती है।

मेंडल के नियम से संकरण विधि

  1. मेण्डल ने मादा के रूप मे ंप्रयोग में लाए जाने वाले बौने पादपों के पुष्पों को खोलकर उनसे पुँकेसरों को हटा दिया. ताकि इनमें स्व-परागण न हो। इस क्रिया को विपुंसन कहते है।
  2. उन्होंने एक लम्बे तने वाले पादप से परागकण लेकर बौने तने के पुष्पों के वर्तिकाग्र पर छोड़ दिया । इस प्रकार् बौने तने वाले पादपों मे ंपर-परागण हो जाता है।
  3. परागण के पश्चात् बौने पादपों के पुष्पों को थैलियो में बाँध दिया गया ताकि किसी अन्य श्रोत् से परागण इनके वर्तिकाग्रों पर न पहुँच पाए।
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