Hello Students, आज कि इस Post के माध्यम से हम आपको भारत के राज्यों के राज्यपाल के बारे सम्पूर्ण जानकारी देंगें कि राज्यपाल किसे कहते है, राज्यपाल कि योग्यता क्या होती है, राज्यपाल कि नियुक्ति कैसे होती है, राज्यपाल का कार्यकाल कितने वर्षों का होता है, राज्यपाल का वेतन तथा भत्ता कितना होता है, राज्यपाल की शक्ति तथा कार्य क्या है सम्पूर्ण जानकारी के लिए हमारी इस Post को जरूर पढें।
राज्यपाल किसे कहते है
भारत का संविधान संघात्मक है। इसमें संघ तथा राज्यों के शासन के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। संविधान के भाग 6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान है। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों के लिए लागू होता है। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के कारण उसके लिए अलग संविधान है। संघ की तरह राज्य की भी शासन पद्धति संसदीय है। राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल होता है, जो कि मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है। कुछ मामलों में राज्यपाल को विवेकाधिकार दिया गया है, ऐसे मामले में वह मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कार्य करता है।
राज्यपाल की योग्यता क्या होती है
अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना अनिवार्य है–
- वह भारत का नागरिक हो-
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो
- वह राज्य सरकार या केन्द्र सरकार या इन राज्यों के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में लाभ के पद पर न हो
- वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
- वह पागल अथवा दिवालिया नहो।
राज्यपाल कि नियुक्ति कैसी की जाती है
संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाएगी, किन्तु वास्तव में राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री की सिफ़ारिश पर की जाती है। राज्यपाल की नियुक्ति के सम्बन्ध में निम्न दो प्रकार की प्रथाएँ बन गयी थीं- किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्त किया जाएगा, जिसका वह निवासी है। राज्यपाल की नियुक्ति से पहले सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाएगा। यह प्रथा 1950 से 1967 तक अपनायी गयी, लेकिन 1967 के चुनावों में जब कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब दूसरी प्रथा को समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की जाने लगी।
राज्यपाल का कार्यकाल कितना होता है
यद्यपि राज्यपाल की कार्य अवधि उसके पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष तक होती है, लेकिन इस पाँच वर्ष की अवधि के समापन के बाद वह तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद नहीं ग्रहण कर लेता। जब राज्यपाल पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद पद पर रहता है, तब वह प्रतिदिन के वेतन के आधार पर पद पर बना रहता है। ऐसे कई उदाहरण है, जब राज्यपाल अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति न किये जाने के कारण अपने पद पर बने रहे हैं। इसके अतिरिक्त राज्यपाल अपनी पदावधि की समाप्ति के पूर्व राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ भी सकता है या राष्ट्रपति उसे पदमुक्त कर सकते हैं।
राज्यपाल का वेतन कितना होता है
11 सितम्बर, 2008 को लिये गये निर्णय के अनुसार राज्यपाल का वेतन 36,000 रुपये से बढ़ाकर 1.10 लाख रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। यह वेतनमान जनवरी, 2006 से प्रभावी माना गया है। इसके पूर्व 10 जनवरी, 2008 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने राज्यपाल का वेतन 75,000 रुपये प्रतिमाह करने का निर्णय लिया था।
राज्यपाल का भत्ता क्या है
राज्यपाल ऐसे भत्ते का भी हकदार है, जिसे संसद के द्वारा नियत किया जाए। इसके अतिरिक्त उसे रहने के लिए सरकारी आवास मिलता है। जिसके लिये उसे किराया नहीं देना पड़ता। यदि दो या दो से अधिक राज्यों का एक ही राज्यपाल है, तब उसे दोनों राज्यपालों का वेतन उस अनुपात में दिया जाएगा, जैसा कि राष्ट्रपति निर्धारित करेंगे।
राज्यपाल के विशेष अधिकार क्या है
राज्यपाल को निम्नलिखित विशेषाधिकार प्राप्त हैं–
- वह अपने पद की शक्तियों के प्रयोग तथा कर्तव्यों के पालन के लिए किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
- राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में किसी भी प्रकार की आपराधिक कार्यवाही प्रारम्भ नहीं की जा सकती।
- जब वह पद पर आरूढ़ हो, तब उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी भी न्यायालय से कोई आदेशिका जारी नहीं की जा सकती।
- राज्यपाल का पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात् उसके द्वारा व्यक्तिगत क्षमता में किये गये कार्य के सम्बन्ध में कोई सिविल कार्यवाही करने के पहले उसे दो मास पूर्व सूचना देनी पड़ती है।
राज्यपाल की शक्ति तथा कार्य क्या होता है
जिस प्रकार केन्द्र में कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है, उसी प्रकार राज्य में कार्यपालिका की शक्ति राज्यपाल में निहित है। राज्यपाल की शक्तियाँ तथा इसके कार्य निम्नलिखित हैं–
कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य
अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्यपाल के पास कार्यपालिका सम्बन्धी निम्नलिखित कार्य हैं–
- राज्यपाल राज्य सरकार के प्रशासन का अध्यक्ष है तथा राज्य की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति का प्रयोग वह अपने अधीनस्थ प्राधिकारियों के माध्यम से कराता है। वह सरकार की कार्यवाही सम्बन्धी नियम बनाता है तथा मंत्रियों में कार्यों का विभाजन करता है।
- राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा मुख्यमंत्री की सलाह से उसके मंत्रिपरिषद के सदस्यों को नियुक्त करता है तथा उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
- राज्यपाल, राज्य के उच्च अधिकारियों, जैसे- महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है तथा राज्य के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को परामर्श देता है।
- राज्यपाल को यह अधिकार है कि, वह राज्य के प्रशासन के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त करे।
- जब राज्य का प्रशासन संवैधानिक तंत्र के अनुसार न चलाया जा सके, तो राज्यपाल राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफ़ारिश करता है। जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाता है, तब राज्यपाल केन्द्र सरकार के अभिकर्ता के रूप में राज्य का प्रशासन चलाता है।
- राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है तथा उप कुलपतियों को भी नियुक्त करता है।
विधायी अधिकार
अनुच्छेद 174 के अनुसार राज्यपाल को विधायी अधिकार प्राप्त हैं। राज्यपाल राज्य विधान मण्डल का एक अभिन्न अंग है और इसे विधायिका के सम्बन्ध में निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं–
- वह राज्य विधान मण्डल के सत्र को आहूत कर सकता है, स्थगित कर सकता है तथा राज्य विधानसभा को भंग कर सकता है।
- यदि राज्यपाल को ऐसा प्रतीत हो कि, राज्य विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वह आंग्ल भारतीय समुदाय के एक व्यक्ति को राज्य विधानसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत कर सकता है।
- वह राज्य विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या के सदस्य के एक छठवें भाग के लिए सदस्यों, जिनका विज्ञान, साहित्य, कला, समाज सेवा, सहकारी आंदोलन आदि के क्षेत्र में विशेष ज्ञान, अनुभव या योगदान हो, को नियुक्त कर सकता है।
- यदि राज्य विधानसभा के किसी सदस्य की अयोग्यता का प्रश्न उत्पन्न होता है तो, अयोग्यता सम्बन्धी विवाद का निर्धारण राज्यपाल चुनाव आयोग से परामर्श करके करता है।
- वह सामान्य आम चुनाव के बाद प्रारम्भ होने वाले तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम विधानमण्डल के प्रथम सत्र को सम्बोधित करता है तथा सदनों को अपना संदेश भी भेज सकता है।
- वह राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करता है और राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही विधेयक अधिनियम के रूप में प्रवृत्त होता है।
- राज्यपाल धन विधेयक के अतिरिक्त किसी विधेयक को पुन: विचार के लिए राज्य विधान मण्डल के पास भेज सकता है तथा राज्य विधान मण्डल द्वारा विधेयक को पुन: पारित किये जाने पर वह उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य है।
अध्यादेश जारी करने की शक्ति
अनुच्छेद 213 के अनुसार जब राज्य विधान मण्डल या राज्य विधानसभा सत्र में न हो तथा संविधान की सातवीं अनुसूची में अन्तर्विष्ट राज्यसूची में वर्णित विषयों में से किसी विषय पर क़ानून बनाना आवश्यक हो, तब राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर अध्यादेश जारी कर सकता है। इस प्रकार जारी किया गया अध्यादेश केवल 6 मास तक प्रभावी रहता है और 6 मास की अवधि समाप्त होने के पूर्व ही राज्य विधानमण्डल या राज्य विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हो जाए, तो अध्यादेश को 6 सप्ताह के अन्दर विधानमण्डल या विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए और यदि 6 सप्ताह के अन्दर अनुमोदित नहीं किया जाता है तो अध्यादेश निष्प्रभावी हो जाएगा। जिन विधेयकों पर राज्यपाल अनुमति देने के पूर्व उन्हें राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखता है, उन विधेयकों से सम्बन्धित विषय पर राज्यपाल अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है।
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