Raskhan ke Dohe – रसखान के महत्वपूर्ण दोहे हिन्दी अर्थ सहित

Raskhan ke Dohe| Raskhan ke Pramukh Dohe| रसखान के प्रमुख दोहे और उनके अर्थ| नमस्कार दोस्तो, आज हम आपके लिए रसखान के कुछ प्रमुख दोहों को लेकर आयें है। जो की भगवान श्री कृष्ण के प्रेम भाव को बृज के लोगो द्वारा प्रदर्षित किया गया है। तो आप एक बार इन दोहों को अवश्य पढे।

रसखान के दोहे

दोस्तों आपको पता होना चाहिए कि रसखान जी कृष्ण भक्ति काल के कवि माने जाते है। उन्होने बृज में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन क्या है। कि भगवान श्री कृष्ण किस प्रकार से बृज के लोगों के साथ रहतें थें, उन्हें किस प्रकार से बृज के लोग प्रेम भाव पूर्वक मानते ते साथ ही भगवान कृष्ण का बृज की गोपियों के प्रति कैसा लगाव था। इन सभी दोहें में भगवान श्री कृष्ण और बृज की गोपियों के बारे में भी वर्णन किया गया है। तो एक बार आप इस दोहे को जरूर पढे।

रसखान के दोहे एवं उनके अर्थ

देख्यो रुप अपार मोहन सुन्दर स्याम को।

वह ब्रज राजकुमार हिय जिय नैननि में बस्यो।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि अति सुंदर ब्रज के राजकुमार श्री कृष्ण उनके हृदय, मन, मिजाज,जी, जान और आंखों में निवास बना कर बस गए हैं।

मोहन छवि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं
उंचे आबत धनुस से छूटे सर से जाहिं।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में रसखान कहते हैं कि मदन मोहन कृष्ण की सुंदर रुप छटा देखने के बाद अब ये आँखें मेरी नही रह गई हैं जिस तरह धनुष से एक बार बाण छूटने के बाद अपना नही रह जाता है। और तीर फिर दोबारा लौटकर नहीं आताहै, वापिस नही होता है।

मन लीनो प्यारे चितै पै छटांक नहि देत
यहै कहा पाटी पढी दल को पीछो लेत।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में कवि रसखान कहते हैं उनका मन प्रियतम श्रीकृष्ण ने ले लिया है लेकिन इसके बदले उन्हें इसका कुछ भी नहीं मिला है। इसके साथ ही कवि कहते हैं कि उन्होंने यही पाठ पढ़ा है कि पहले अपना सर्वस्व दो तब मुझसे कुछ मिलेगा।

मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नंदनंद
अब बेमन मैं क्या करुं परी फेर के फंद।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी प्रेम भावना उजागर करते हुए कहते हैं कि मेरे मन का माणिक्य रत्न तो चित्त को चुराने बाले नन्द के नंदन श्री कृष्ण ने चोरी कर लिया है। अब बिना मन के वे क्या करें। वे तो भाग्य के फंदे के-फेरे में पड़ गये हैं। अब तो बिना समर्पण कोई उपाय नही रह गया है। अर्थात जब उनका मन ही श्री कृष्ण के पास है तो वे पूरी तरह से समर्पित हो चुके हैं।

बंक बिलोचन हंसनि मुरि मधुर बैन रसखानि
मिले रसिक रसराज दोउ हरखि हिये रसखानि।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि तिरछी नजरों से देखकर मुस्कुराते और मीठी बोली बोलने बाले मनमोहन कृष्ण को देखकर उनका हृदय आनन्दित हो जाता है। अर्थात जब रसिक और रसराज कृष्ण मिलते हैं तो हृदय में आनन्द का प्रवाह होने लगता है।

अरी अनोखी बाम तूं आई गौने नई
बाहर धरसि न पाम है छलिया तुव ताक में।

दोहे का अर्थ-👇

इसमें रसखान जी गोपियों से कहते हैं कि – अरी अनुपम सुन्दरी तुम नयी नवेली गौना द्विरागमन कराकर ब्रज में आई हो, क्या तुम्हें मोहन का चाल-ढाल मालूम नहीं है। अगर तुम घर के बाहर पैर रखी तो समझ लो-वह छलिया तुम्हारी ताक में लगा हुआ है। पता नहीं कब वह तुम्हें अपने प्रेम जाल में फांस लेगा।

प्रीतम नंद किशोर जा दिन तें नैननि लग्यौ
मन पावन चितचोर प़त्रक ओट नहि सहि सकौं।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में कवि रसखान जी ने कहा है कि जबसे उनकी आंखे उनके प्रियतम श्रीकृष्ण से मिली हैं। तब से उनका मन परम पवित्र हो गया है और अब वे उनका मन उनके अलावा कहीं और नहीं लगता है और हमेशा उनका मन श्री कृष्ण को पूरी तरह से देखने के लिए व्याकुल रहता है।

या छवि पै रसखान अब वारौं कोटि मनोज
जाकी उपमा कविन नहि पाई रहे कहुं खोज।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में रसखान जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के अति सुंदर और मनोहर रुप पर करोंड़ो कामदेव न्योछावर हैं, वहीं उनकी तुलना विद्धान कवि भी नहीं खोज पा रहे हैं अर्थात श्री कृष्ण के सौन्दर्य रूप की तुलना करना संभव नहीं है।

जोहन नंद कुमार को गई नंद के गेह
मोहि देखि मुसिकाई के बरस्यो मेह सनेह।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में महाकवि रसखान जी कहते हैं कि जब वे श्री कृष्ण से मिलने उनके घर गए तब उन्हें देखकर श्री कृष्ण इस तरह मुस्कुराये जैसे लगा कि उनके स्नेह प्रेम की बारिश चारों तरफ होने लगी। इसके साथ ही श्याम का स्नेह रस हर तरफ से बरसने लगा।

काग के भाग बडे सनती हरि हाथ सौं ले गयो माखन रोटी।

दोहे का अर्थ-👇

कृष्ण की बाल लीलाएं अत्यंत मनोहारी हैं। रसखान ने उन्हें परमात्मा के स्वरुप में पहचान लिया है। उन्होनें उस कौवे के भाग्य की सराहना की है, जिसने प्रभु के हाथ से माखन रोटी लेने का सौभाग्य प्राप्त किया है।

काह कहूं रतियां की कथा बतियां कहि आबत है न कछू री
आइ गोपाल लियो करि अंक कियो मन कायो दियौ रसबूरी।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि रात की बात क्या कही जाए। कोई बात कहने में नही आती है। श्रीकृष्ण आकर मुझे अपने गोद में भर लिया और मेरे साथ खूब मनमानी करने लगे। मेरे मन एवं शरीर में आनन्द से रस का सराबोर हो गया।

प्रेम निकेतन श्रीबनहिं आई गोबर्धन धाम
लहयौ सरन चित चाहि के जुगल रस ललाम।

दोहे का अर्थ-👇

रसखान श्रीकृष्ण के लीला धाम वृंदावन आ गये और अपने हृदय चित्त एवं मानस में राधाकृष्ण को बसाकर उनके प्रेमरस में डूब गए।

प्रेम हरि को रुप है त्यौं हरि प्रेमस्वरुप
एक होई है यों लसै ज्यों सूरज औ धूप।

दोहे का अर्थ-👇

रसखान प्रेमी भक्त कवि थे। वे प्रेम को हरि का रुप या पर्याय मानते हैं और ईश्वर को साक्षात प्रेम स्वरुप मानते हैं। प्रेम एवं परमात्मा में कोई अन्तर नहीं होता जैसे कि सूर्य एवं धूप एक हीं है और उनमें कोई तात्विक अन्तर नहीं होता।

ए सजनी लोनो लला लह्यो नंद के गेह
चितयो मृदु मुसिकाइ के हरी सबै सुधि गेह।

दोहे का अर्थ-👇

इस दोहे में महाकवि रसखान जी कहते हैं कि हे प्रिय सजनी श्याम लला के दर्शन का विशेष लाभ है। जब हम नंद के घर जाते हैं तो वे हमें मधुर मुस्कान से देखते हैं और हम सब की सुधबुध हर लेते हैं अर्थात हमारी सारी परेशानियों का हल निकल जाता है।

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दोस्तों कैसी लगी हमारी यह आज की Raskhan ke Dohe लेख आप हमें जरूर बताये तथा इसमें से आपको  विशेष रूप से कौन दोहा अच्छा लगा। इसके बारे में भी आप हमें बतायें साथ ही आप हमे यह बताये कि क्या वास्तव मे उस समय तुलसीदास जी ने सही कहा था कि आज का समाज ऐसा होगा। इसलिए आप हमें Comment करना न भूलें।

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