Alankar in Hindi अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण सहित (हिन्दी व्याकरण)
Alankar in Hindi : अलंकार किसे कहतें हैं? इसके भेद कितने होतें है? Alankar kitne prakar ke hote hain आदि से सम्बन्धित आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको अलंकार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी बहुत ही Alankar in Hindi परिभाषा और उदाहरण के साथ लेकर आयें है। Students जैसा कि आप जानते है कि High School, Intermediate में अलंकार से सम्बन्धित प्रश्न पूछें जातें। इसलिए ये महत्वपूर्ण लेख हम आप के लिये लेकर आयें।
Alankar in Hindi
Alankar हिन्दी व्याकरण का मुख्य तत्व है, इसके बिना हिन्दी ग्रामर पूर्ण ही नही हो सकती है, ऐसे मे इस सम्पूर्ण पाठ को बडे ही साधारण रुप से इस लेख मे एक एक बिन्दु पर विस्तार से जानकारी उपलब्ध है, आप बिना किसी त्रुटि के इसे पढे और परीक्षा के लिए यहॉ से तैयारी को मजबूत कर सकते है, नीचे सम्पूर्ण Alankar in Hindi हिन्दी भाषा मे उपलब्ध है।
Alankar Ki Paribhasa
काव्य की शोभा बढ़ानेवाले तत्वों का अलंकार कहते है। अलंकार के मुख्य दो भेद है- शब्दालंकार और अर्थालंकार। जहाँ शब्दों में चमत्कार आ जाता है वहाँ शब्दालंकार तथा जहां अर्थ के कारण रमणीयता आ जाती है उसे अर्थालंकार कहते है।
अलंकार कितने प्रकार के होते हैं
मुख्यत: ये प्रश्न काफी ज्यादा विद्यार्थियो द्वारा खोजा जाता है, और पूछा भी जाता है, ज्यादातर की एकदिवसीय परीक्षा जिसमे हिन्दी विषय होता है, उसके सन्दर्भ मे यह एक बहुत बडा प्रश्न है Alankar kitne prakar ke hote hai नीचे हमने बताया है, कि वास्तव मे आप अलंकार कितने प्रकार के होते है।
अलंकार 2 प्रकार के होते है।
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
शब्दालंकार
शब्दालंकार तीन प्रकार के होतें है-
- अनुप्रास
- यमक
- श्लेष
अनुप्रास अलंकार
जब किसी काव्य में एक ही वर्ण की आवृत्ति कई बार हो तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण–
राधा के बर बैन सुनि चीनी चकित सुभाइ।
दाख दुखी मिसरी मुई सुधा रही सकुचाइ।।
यहाँ ब, च, म और स वर्णो की आवृत्ति हुई है इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
अनुप्रास अलंकार के पाँच भेद होतें है-
- छेकानुप्रास
- वृत्यनुप्रास,
- श्रुत्यनुप्रास
- लाटानुप्रास
- अन्त्यानुप्रास
यमक अलंकार
जहाँ भिन्न-भिन्न अर्थों वाले शब्दों की आवृत्ति हो वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण-
इकली ड़री हौं, घन देखि के ड़री हौं,
खाय बिस की ड़री हौं घनस्याम मरि जाइ हौं।
ऊपर के पद में ड़री तीन बार आया है- अर्थ भिन्न-भिन्न है। पहली ड़री का अर्थ पड़ी, दूसरी डरी का अर्थ भयभीत है तथा तीसरी डरी का अर्थ विष की डाली या टुकड़ी है।
श्लेष अलंकार
जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो , किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष अलंकार है ! जैसे –
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।
पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून ।।
यहाँ पानी के तीन अर्थ हैं – कान्ति , आत्म – सम्मान और जल । अत: शलेष अलंकार है , क्योंकि पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा उसके अर्थ तीन हैं ।
अर्थालंकार
अर्थालंकार नौ प्रकार के होते है-
- उपमा
- रूपक
- अनन्वय
- प्रतीप
- संदेह
- भ्रान्तिमान
- उत्प्रेक्षा
- दृष्टान्त
- अतिश्योक्ति
उपमा अलंकार
उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार के चार अंग है-
- उपमेय
- उपमान
- साधारण धर्म
- वाचक शब्द
उदाहरण-
हरिपद कोमल कमल से ।
इस पंक्ति मे उपमा अलंकार के चारों अंग है। इसमे हरिपद का वर्णन किया जा रहा है, वे उपमेय है। उनकी समानता कमल से की गयी है, अतः कमल उपमान है। कोमलता वाले गुण के कारण की दोनो के बाच समानता दिखायी गयी है, अतः साधारण धर्म है तथा से वाचक शब्द है।
रूपक अलंकार
जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाता है रूपक अलंकार कहलाता है।
उदाहरण–
अम्बर पनघट में डुबो रही ताराघट उषा नागरी ।
आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े डुबो रही है । यहाँ आकाश पर पनघट का , उषा पर स्त्री का और तारा पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
अनन्वय अलंकार
जब उपमेय की समता में कोई उपमान नहीं आता और कहा जाता है कि उसके समान वही है , तब अनन्वय अलंकार होता है।
उदाहरण–
यद्यपि अति आरत – मारत है. भारत के सम भारत है।
प्रतीप अलंकार
प्रतीप का अर्थ है उल्टा या विपरीत । यह उपमा अलंकार के विपरीत होता है । क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित , पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई जाती है।
उदाहरण–
सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक ।
सीताजी के मुख ( उपमेय )की तुलना बेचारा चन्द्रमा ( उपमान )नहीं कर सकता । उपमेय की श्रेष्टता प्रतिपादित होने से यहां प्रतीप अलंकार है ।
संदेह अलंकार
जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है , तब संदेह अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता है।
उदाहरण–
यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
भ्रांतिमान अलंकार
जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो जाये वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता है अथार्त जहाँ उपमान और उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाये मतलब जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी अंग माना जाता है।
उदाहरण–
पायें महावर देन को नाईन बैठी आय ।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।।
उत्प्रेक्षा अलंकार
उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है !
उदाहरण–
मुख मानो चन्द्रमा है ।
यहाँ मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है। यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
इस अलंकार की पहचान मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों से होती है।
दृष्टान्त अलंकार
जहां उपमेय , उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है।
उदाहरण–
बसै बुराई जासु तन ,ताही को सन्मान ।
भलो भलो कहि छोड़िए ,खोटे ग्रह जप दान ।।
किसी बात को बढ़ा -चढ़ाकर कहना । जब काव्य में कोई बात बहुत बढ़ा -चढ़ाकर कही जाती है तो वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण–
लहरें व्योम चूमती उठतीं ।
यहां लहरों को आकाश चूमता हुआ दिखाकर अतिशयोक्ति का विधान किया गया है।
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