छन्द किसे कहतें हैं? इसके भेद कितने होतें है? आदि से सम्बन्धित आज के इस Hindi Grammar के Chand छन्द लेख के माध्यम से हम आपको छन्द के बारे में सम्पूर्ण जानकारी बहुत ही सरल परिभाषा और उदाहरण के साथ लेकर आयें है। Students जैसा कि आप जानते है कि High School, में Intermediate में छन्द से सम्बन्धित प्रश्न पूछें जातें। इसलिए ये महत्वपूर्ण लेख हम आप के लिये लेकर आयें।
Chand Ki Paribhasa छन्द कि परिभाषा
छन्द कविता की स्वाभविक गति के नियम-बध्द रूप है। सामानय धरणा के अनुलार जातीय संगीत और भाषावृत्ति के आधार पर निर्मत लयादर्श की आवृत्ति को छन्द कहते है। छन्द में निश्चित मात्रा या वर्ण की गणना होती है। छन्द के आदि आचार्य पिंगल है। इसी से छन्द शास्त्र को पिंगलशास्त्र भी कहते है। छन्द Chand in Hindi के बारे मे पढे विस्तार सें।
चरण
प्रत्येक छन्द चरणों में विभाजित होता है। इनको पद या पाद कहते है। जिस प्रकार मनुष्य चरणों पर चलता है, उसी प्रकार कविता भी चरणों पर चलती है। छन्द में प्रायः चार चरण होते है। जो सामान्यतः चार पंक्तियों में लिखे जाते है। किन्ही-किन्ही छन्दो में, जैसे- छप्पय, कुण्डलियाँ आदि में छह चरण होते है।
वर्ण और मात्रा
वर्णों कि गणना करते समय वर्ण चाहे लघु हो अथवा गुरू, उसे एक ही मीनी जाता है, यथा -‘रम’ राम’,’रामा’ तीनों शब्दो में दो-दो वर्ण है। मात्रा से अभिप्राय उच्चारण के समय की मात्रा से है। गुरू में लघु की अपेक्षा दूना समय लगता है इसलिए मात्रओं की जहाँ गणना होती है वहाँ लघु की एक मात्रा होती है और गुरू की दो मात्राएँ होती है। लघु का संकेत खड़ी रेखा ‘।’ और गुरू का संकेत वक्र रेखा ‘s’ होता है। लघु के लिए ‘ल’ तथा गुरू के लिए ‘ग’ के संकेतो का भी प्रयोग होता है।
गण
तीन वर्णों के लघु गुरू क्रम के अनुसार योग को गण कहते है। गणों को समझने के लिए निम्न सूत्र उपयोगी है-
यमाताराजभानसलगा
इन सूत्रों से आठों गणों का स्वरूप ज्ञात होता है। यथा- यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण।
छन्द के प्रकार
मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं-
- मात्रिक छन्द
- वर्णवृत छन्द
मात्रिक छन्द
मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है, वर्णो के लघु और गुरू के क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता। इन छन्दो के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या नियत रहती है। मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं- सम,अर्धसम और विषम।
चौपाई छंद
यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरु या लघु नहीं होता है लेकिन दो गुरु और दो लघु हो सकते हैं। अंत में गुरु वर्ण होने से छंद में रोचकता आती है।
उदाहरण
“इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”
दोहा
यह अर्धसममात्रिक छन्द है। यह सोरठा का विपरीत होता है। इसमें चार चरण होते है इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13, 13 मात्राएं होती है। सम चरणों (दूसरे ओर चौथे) में 11, 11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में लघु पड़ना आवश्यक है एवं तुक भी मिलना चाहिए।
उदाहरण
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउं रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
I I I I I I I I I I I I I S S I I I I S I
सोरठा
यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है। इसके विषम चरणों में 11मात्राएँ एवं सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं । तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है। इस प्रकार यह दोहे का उल्टा छंद है।
उदाहरण
कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।
जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥
S I S I I I S I I I I I S S I I I I I
रोला
मात्रिक सम छंद है , जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं तथा 11 और 13 पर यति होती है। प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते हैं। दो -दो चरणों में तुक आवश्यक है।
उदाहरण
नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में ।
रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में ॥
I I I S I S SI SI I I SI I I I S
कुंडलियाँ छंद
कुंडलियाँ विषम मात्रिक छंद होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। शुरू के 2 चरण दोहा और बाद के 4 चरण उल्लाला छंद के होते हैं। इस तरह हर चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण
सांई अपने भ्रात को ,कबहुं न दीजै त्रास ।
पलक दूरि नहिं कीजिए , सदा राखिए पास ॥
सदा राखिए पास , त्रास कबहुं नहिं दीजै ।
त्रास दियौ लंकेश ताहि की गति सुनि लीजै ॥
कह गिरिधर कविराय राम सौं मिलिगौ जाई ।
पाय विभीषण राज लंकपति बाज्यौ सांई ॥
S I I S I I S I S I I I S S S S
हरिगीतिका
यह मात्रिक सम छंद हैं। प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। यति 16 और 12 पर होती है तथा अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है।
उदाहरण
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
I I S IS S SI S S S IS S I I IS
बरवै
यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है जिसके विषम चरणों में 12 और सम चरणों में 7 मात्राएँ होती हैं। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है। सम चरणों के अन्त में जगण या तगण होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है।
उदाहरण
वाम अंग शिव शोभित , शिवा उदार ।
सरद सुवारिद में जनु , तड़ित बिहार ॥
I I I I S I I S I I I I I I S I
वर्ण-वृत छन्द
जिन छन्दो कि रचना वर्णो की गणना के आधार पर की जाती है, उन्हे वर्ण-वृत या वार्णिक छन्द कहते है। वर्ण-वृतों के तीन मुख्य भेद है- सम, अर्ध्दसम,विषम।
इन्द्रवज्रा
वार्णिक समवृत्त , वर्णों की संख्या 11 प्रत्येक चरण में दो तगण ,एक जगण और दो गुरु वर्ण ।
उदाहरण –
होता उन्हें केवल धर्म प्यारा ,सत्कर्म ही जीवन का सहारा ।
उपेन्द्रवज्रा
वार्णिक समवृत्त छंद है। इसमें वर्णों की संख्या प्रत्येक चरण में 11 होती है। गणों का क्रम है – जगण , तगण ,जगण और दो गुरु।
उदाहरण –
बिना विचारे जब काम होगा ,कभी न अच्छा परिणाम होगा।
सवैया छन्द
इसके हर चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। इसमें एक से अधिक छंद होते हैं। ये अनेक प्रकार के होते हैं और इनके नाम भी अलग -अलग प्रकार के होते हैं। सवैया में एक ही वर्णिक गण को बार-बार आना चाहिए। इनका निर्वाह नहीं होता है।
उदाहरण
सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
सो अपराध परयो हमसों,
अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
बाहुन देहि कुठारहि केशव,
आपने धाम कौ पंथ गहौ।।”
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