रस कि परिभाषा, भेद, उदाहरण सहित (हिन्दी व्याकरण)

रस किसे कहतें हैं। इसके भेद कितने होतें है। आदि से सम्बन्धित आज के इस लेख के माध्यम  से हम आपको रस के बारे में सम्पूर्ण जानकारी बहुत ही सरल परिभाषा और उदाहरण के साथ लेकर आयें है। Students जैसा कि आप जानते है कि High School,  में Intermediate में रस से सम्बन्धित प्रश्न पूछें जातें। इसलिए ये महत्वपूर्ण लेख हम आप के लिये लेकर आयें।

रस की परिभाषा

“कविता कहानी या उपन्यास को पढ़ने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे ‘रस‘ कहते हैं। रस काव्य की आत्मा है।” आचार्य विश्वनाथ ने साहित्य-दर्पण में काव्य की परिभाषा देते हुए लिखा है- ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यं‘ अर्थात रसात्मक वाक्य काव्य है।

रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- स्थायी भाव और संचारी भाव। यही काव्य के अंग कहलाते है।

स्थायी भाव

रस रूप में पुष्ट होने वाला तथा सम्पूर्ण प्रसंग में व्याप्त रहने वाला भाव स्थाई भाव कहलाता है। स्थाई भाव 9 माने गए हैं किंतु वात्सल्य नाम का दसवां स्थाई भाव भी स्वीकार किया जाता है।

भरत मुनि ने अपने ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में 8 रस ही माने हैं।शान्त और वात्सल्य को उन्होंने रस नहीं माना। किन्तु बाद के आचार्यों ने शांत और वात्सल्य को रस माना है जिस कारण अब रस 10 माने जाते हैं। नीचे क्रमशः पहले रस तथा उसके बाद स्थायी भाव दिए गए हैं-

क्रम संख्यारसस्थायी भाव
1.श्रंगाररति
2.हास्यहास
3.करूणशोक
4.रौद्रक्रोध
5.वीरउत्साह
6.भयानकभय
7.वीभत्सजुगुप्सा
8.अदभुतविस्मय
9.शान्तनिर्वेद
10.वत्सलवात्सल्य

 श्रृंगार रस 

जब किसी काव्य में नायक नायिका के प्रेम,मिलने, बिछुड़ने आदि जैसी क्रियायों का वर्णन होता है तो वहाँ श्रृंगार रस होता है। यह 2 प्रकार का होता है-

  1. संयोग श्रृंगार
  2. वियोग श्रृंगार

संयोग श्रृंगार

जब नायक नायिका के मिलने और प्रेम क्रियायों का वर्णन होता है तो संयोग श्रृंगार होता है।

उदाहरण-

मेरे तो गिरधर गोपाल दुसरो न कोई
जाके तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।

वियोग श्रृंगार

जब नायक नायिका के बिछुड़ने का वर्णन होता है तो वियोग श्रृंगार होता है।

उदाहरण-

हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी
तुम देखि सीता मृग नैनी।

हास्य रस

जब किसी काव्य आदि को पढ़कर हँसी आये तो समझ लीजिए यहां हास्य रस है।

उदाहरण-

मातहिं पितहिं उरिन भये नीके।

गुरू ऋण रहा सोंच बड़ जी के।।

करुण रस 

जब भी किसी साहित्यिक काव्य ,गद्य आदि को पढ़ने के बाद मन में करुणा,दया का भाव उत्पन्न हो तो करुण रस होता है।

उदाहरण-

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौ जड़ दैव जियावई मोही।।

रौद्र रस

जब किसी काव्य में किसी व्यक्ति के क्रोध का वर्णन होता है तो वहां रौद्र रस होता है।

उदाहरण-

अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा,
यह मत लछिमन के मन भावा।
संधानेहु प्रभु बिसिख कराला,
उठि ऊदथी उर अंतर ज्वाला।

वीर रस

जब किसी काव्य में किसी की वीरता का वर्णन होता है तो वहां वीर रस होता है।

उदाहरण-

चमक उठी सन सत्तावन में वो तलवार पुरानी थी,
बुंदेलों हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।

भयानक रस

जब भी किसी काव्य को पढ़कर मन में भय उत्पन्न हो या काव्य में किसी के कार्य से किसी के भयभीत होने का वर्णन हो तो भयानक रस होता है।

उदाहरण-

लंका की सेना कपि के गर्जन रव से काँप गई।

हनुमान के भीषण दर्शन से विनाश ही भांप गई।

उस कंपित शंकित सेना पर कपि नाहर की मार पड़ी।

त्राहि- त्राहि शिव त्राहि- त्राहि शिव की सब ओर पुकार पड़ी।।

वीभत्स रस

वीभत्स यानि घृणा।जब भी किसी काव्य को पढ़कर मन में घृणा आये तो वीभत्स रस होता है।ये रस मुख्यतः युद्धों के वर्णन में पाया जाता है जिनमें युद्ध के पश्चात लाशों, चील कौओं का बड़ा ही घृणास्पद वर्णन होता है।

उदाहरण

कोउ अंतडिनी की पहिरि माल इतरात दिखावट।

कोउ चर्वी लै चोप सहित निज अंगनि लावत।।

कोउ मुंडनि लै मानि मोद कंदुक लौं डारत।

कोउ रूंडनि पै बैठि करेजौ फारि निकारत।।

अद्भुत रस

जब किसी गद्य कृति या काव्य में किसी ऐसी बात का वर्णन हो जिसे पढ़कर या सुनकर आश्चर्य हो तो अद्भुत रस होता है।

उदाहरण-

इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।।

तन पुलकित मुख वचन न आवा नयन मूँदि चरनन सिुर नावा।।

शांत रस

जब कभी ऐसे काव्यों को पढ़कर मन में असीम शान्ति का एवं दुनिया से मोह खत्म होने का भाव उत्पन्न हो तो शांत रस होता है।

उदाहरण-

मेरो मन अनत सुख पावे
जैसे उडी जहाज को पंछी फिर जहाज पे आवै।

वात्सल्य रस

जब काव्य में किसी की बाल लीलाओं या किसी के बचपन का वर्णन होता है तो वात्सल्य रस होता है।सूरदास ने जिन पदों में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है उनमें वात्सल्य रस है।

उदाहरण-

मैया मोरी दाऊ ने बहुत खिजायो।
मोसों कहत मोल की लीन्हो तू जसुमति कब जायो।

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