Essay on Holi, Holi Par Nibandh – आज का हमारा यह लेख Holi Par Nibandh पर आधारित है। आज के इस लेख में हम आप लोगों के लिए (Essay on Holi) होली पर निबंध लेकर आए हैं। जो कि विद्यार्थियों से स्कूल व कॉलेजों में भी पूछा जाता है। और यह भारतवर्ष का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। यह बहुत ही खुशियों का और अनेकों रंगों का त्योहार माना जाता है। तो आप हमारे द्वारा दिए गए इस पूरे लेख को अवश्य पढ़ें।
Essay on Holi
होली का पर्व ऋतुराज वसंत के आगमन पर फल्गुन की पूर्णिमा को आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इन दिनों रबी की फसल पकने की तैयारी में होती है। फल्गुन पुुर्णिमा के दिन लोग गाते – बजाते, हँसते – हँसाते अपने खेतों पर जाते हैं। वहां से वे जौ की सुनहरी बालियाँ तोड़ लाते हैं। जब होली में आग लगती है। तब उस अधपके अन्न को उसमें भूनकर एक दूसरे को बँटकर गले मिलते हैं।
होलिका दहन के सम्बन्ध में एक कहनी प्रसिध्द है – हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि आग उसे जला नहीं सकती है। हिरण्यकशिपु ईश्वर को नहीं मानता था। वह स्वयं को ही सबसे बड़ा भगवान मानता था। उसका पुत्र प्रहलाद अपने पिता के बिल्कुल ही विपरीत था। वह ईश्वर पर आंख बन्द करके विश्वास करता था। प्रहलाग के पिता ने प्रहलाद को ऐसा न करने के लिए बार – बार समझाता था। किन्तु प्रहलाद पर कोई असर नहीं हुआ। इसके पश्चात हिरण्यकशिपु प्रहलाद के ऊपर बहुत ही क्रोधित हो उठा। उसने अपने पुत्र प्रहलाद को अनेकों प्रकार को दंड दिए, किन्तु प्रहलाद अपने दृण निश्चय से कभी पीछे नहीं हटा।
Holi Par Nibandh
फिर उसके बाद हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रहलाद को अपनी बहन होलिका के सुपुर्द कर दिया। होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। होलिका को आग में न जलने के वरदान से बहुत ही घमंड आ गया था। इसी कारण से होलिका आग में बैठते ही आग में भस्म हो गई। और भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ। इस प्रकार होलिका – दहन बुराई के ऊपर अच्छाई की विजय हो गई।
अन्य कथाओं के अनुसार – भगवान् श्रीकृष्ण ने इस दिन गोपियों के साथ रासलीला की थी। इसी दिन नंदगाँव में सभी लोगों ने रंग और गुलाल के साथ खुशियाँ मनाई थीं। नंदगाँव और बरसाने की ब्रजभूमि पर इसी दिन बूढ़े और जवान, स्त्री और पुरूष सभी एक साथ मिलकर जो रास रंग मचाया था, होली आज भी उसी यादों को ताजा कर जाती है।
पहले प्रतिभोज का आयोजन होता था, गीतों, फागों के उत्सव होते थे, मिठाईंयाँ बाँटी जाती थीं। बीते वर्षों की कमियों पर विचार होता था। इसके बाद दूसरे दिन होली खेली जाती है। सभी छोटे बड़े मिलकर होली खेलते थे। अतिथियों को मिठाईंयाँ और तरह -तरह के पकवान खिलाकर तथा गले मिलकर विदा किया जाता था।
होली पर निबंध
किन्तु आज का यह पर्व बहुत ही घिनौना रूप धारण कर चुका है। इसमें शराब और अन्य नसीले पदार्थों का भरपूर सेवन होने लगा है। राह चलते लोगों पर कीचड़ उछाला जाता है। होली की जलती आग में घरों के किवाड़, चौकी, छप्पर आदि जलाकर राख कर दिए जाते हैं। खेत खलिहानों के अनाज, मवेशियों का चारा तक आग में स्वाहा कर देना अब साधारण सी बात हो गई है। रंग के बहाने दुश्मनी निकालना, शराब के नशे में मन की भड़ास निकालना आज होली में आम बात हो गई है।
यह कारण है कि आज समाज में आपसी प्रेम के बदले दुश्मनी पनप रही है। जोड़ने वाले त्योहार में मनों को तोड़ने लगे हैं। होली की इन बुराइयों के कारण सभ्य और समझदार लोगों ने इससे किनारा कर लिया है। रंग और गुलाल से लोग भागने लगे हैं।
Essay on Holi in HINDI
त्योहार जीवन की एकरसता को तोड़ने और उत्सव के द्वारा नई रचनात्मक स्फूर्ति हासिल करने के निमित्त हुआ करते हैं। संयोग से मेल – मिलाप का अनूठा त्योहार होने के कारण होली में यह स्फूर्ति हासिल करने और साझेपन की भावना को विस्तार देने के अवसर ज्यादा है। देश में मनाये जाने वाले धार्मिक व समाजिक त्यौहारों के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य जु़ड़ी हुई है। शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण तिथि हो, जो किसी न किसी त्यौहार या पर्व से संबंधित न हो। दशहरा, रक्षाबन्धन, दीपावली, रामनवमी, वैशाखी, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, बुध्द पूर्णिमा आदि बड़े धार्मिक त्यौहार हैं।
इनके अलावा कई क्षेत्रीय त्यौहार भी हैं। भारतीय तीज त्यौहार साझा संस्कृति के सबसे बडे़ प्रतीक रहें। रंगों का त्यौहार होली धार्मिक त्यौहार होने के साथ – साथ मनोरंजन का उत्सव भी है। यह त्यौहार अपने आप में उल्लास, उमंग तथा उत्साह लिए होता है। इसे मेल व एकता का पर्व भी कहा जाता है।
हंसी ठिठोली के प्रतीक होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार कहलाता है। इस त्यौहार में लोग पुराने बैरभाव त्याग एक दूसरे को गुलाल लगा बधाई देते हैं। और गले मिलते हैं। इसके पहले दिन पूर्णिमा को होलिका दहन और दूसरे दिन के पर्व का धुलेंडी कहा जाता है। होलिका दहन के दिन गली – मौहल्लों में लकड़ी के ढेर लगा होलिका बनाई जाती है। शाम के समय महिलायें, युवतियां उसका पूजन करती हैं। इस अवसर पर महिलाएं श्रृंगार आदि कर सजधज कर आती हैं। वृज क्षेत्र में इस त्यौहार का रंग करीब एक पखवाड़े पूर्व शुरू हो जाता है।
होली भारत का एक ऐसा वर्व है जिसे देश के सभी निवासी सहर्ष मनाते हैं। हमारे तीज त्यौहार हमेशा साझा संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक रहे हैं। यह साझापन होली में हमेशा दिखता आया है। मुगल बादशाहों की होली की महफिलें इतिहास में दर्ज होने के साथ यह हकीकत भी बयां करती है। कि रंगों के इस अनूठे जश्न में हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी बढ़ चढ़कर शामिल होते हैं। मीर, जफर और नजीर की शायरी में होली की जिस धूम का वर्णन है, वह दरअसल लोक परंपरा और सामाजिक बहुलता का ही रंग है। होली के पीछे एक पैराणिक कथा प्रसिध्द है। इस संबंध में कहा जाता है। कि दैत्यराज हिरण्यकशिपु नें अपनी प्रजा को भगवान का नाम न लेने का आदेश दे रखा था। किन्तु उसके पुत्र प्रहलाद ने अपने पिता के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया था।
जिस कारण से हिरण्यकशिपु बहुत ही क्रोधित हो उठा। वह अपने पुत्र प्रहलाद अनेको दंड दिया परंतु उसका पुत्र प्रहलाद अपने भक्ति के मार्ग से कभी भी नहीं डिगा। हिरण्यकशिपु बहुत ही परेशान हो गया, बहुत से दंड देने के पश्चात भी प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ। हिरण्यकशिपु बहुत बार प्रहालद को मृत्यु दंड देने के पश्चात बच जाने पर एक युक्ति बनाई, जिसमें के उसने अपनी बहन होलिका एक संदेश पत्र लिखकर बुलवाया।
होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में जल नहीं सकती है। हिरण्यकशिपु की युक्ति थी कि उसकी बहन होलीका उसके पुत्र प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाएगी। और जिससे कि उसका पुत्र आग में भस्म हो जाएगा। परंतु यह सभी चालें विपरीत हो गई। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका आग में जल कर भस्म हो गई पर भक्त प्रहलाद को तनिक सी भी आंच नहीं आई।
इसी कारण से लोग फल्गुन की पूर्णिमा के शाम को लकड़ी, उपले, घास फूस इकट्ठा करके होलिका दहन की प्रथा को निभाते हैं। और महिला इससे सम्बन्धित गीत भी गाती है। और घरों में अनेकों प्रकार की मिठाईंयाँ बनाई जाती है। उसके अगले दिन बच्चे अनेकों प्रकार के रंगों के साथ अपनी – अपनी टोली एकत्र करके होली के इस त्यौहार का आनंद लेते हैं। लोग अपने सभी गिले – सिकवे भुलाकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। और झूमते नाचते हैं।
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