भारतीय अर्थव्यस्था (1950-1990)
भारत में योजना का मुख्य उद्देश्य विकास की एक ऐसी प्रक्रिया प्रारंभ करना है जो रहन-सहन को ऊँचा उठाए तथा लोगों के लिए समृद्धि एवं वैभव पूर्ण जीवन के नए अवसर उपलब्ध कराएगी।
- 5 अगस्त 1947 के दिन भारत में स्वतंत्रता का एक नया प्रभात उदित हुआ।
- स्वतंत्र भारत को तय करना था कि हमारे देश में कौन सी आर्थिक प्रणाली सबसे उपर्युक्त रहेगी जो केवल कुछ लोगों के लिए नहीं बल्कि सर्वजन कल्याण के लिए कार्य करेगी।
- जवाहरलाल नेहरु को समाजवाद का प्रतिमान सबसे अच्छा लगा किंन्तु वह भी भूतपूर्व सोवियत संघ की राजनीति के पक्षधर नहीं थे जिसमें उत्पादन के सभी साधन खेत और कारखाने सरकार के स्वामित्व के अंतर्गत थे।
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आर्थिक प्रणालियों के प्रकार
प्रत्येक समाज को तीन उत्तर देने होते हैं
- देश में किन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाए वस्तुएं और सेवाएं किस प्रकार उत्पादित की जाए।
- उत्पादक कार्य में मानव श्रम का अधिक प्रयोग करें अथवा पूंजी मशीनों का?
- उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का विभिन्न व्यक्तियों के बीच किस प्रकार वितरण किया जाना चाहिए।
इन सभी प्रश्नों का एक उत्तर तो मांग और पूर्ति का बाजार की शक्तियों पर निर्भर करता है
- बाजार अर्थव्यवस्था में जिसे पूंजीवादी अर्थव्यवस्था भी कहते हैं उन्हें उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन होता है जिनकी बाजार में मांग है इसमें वही वस्तुए उत्पादित की जाती है जिन्हें देश के घरेलू या विदेशी बाजारों में सलाभ से उसे बेचा जा सकता है
- यदि कारो की माँग है तो कारों का उत्पादन होगा और साइकिल की माँग है तो साइकिल का उत्पादन होगा।
- यदि श्रम पूंजी की अपेक्षा सस्ता है तो अधिक श्रम प्रधान विधियों का प्रयोग होगा और यदि श्रम की अपेक्षा पूंजी सस्ती है तो उत्पादन की अधिक पूंजी प्रधान विधियों का प्रयोग होगा।
- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था – में उत्पादित वस्तुओं का विभिन्न व्यक्तियों के बीच वितरण उनकी आवश्यकता के अनुसार नहीं होता अधिकांश विभाजन किस आधार पर होता है कि व्यक्तियों की क्रय क्षमता कितनी है और वह किन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने की क्षमता रखते हैं अभिप्राय है कि जेब में रुपए होने चाहिए
- कम कीमत पर गरीबों के लिए घर आवश्यक है किंतु इसकी गणना बाजार मांग को ध्यान में रखकर नहीं की जानी चाहिए क्योंकि माँग के अनुसार गरीबों की क्रय शक्ति नहीं है।परिणाम स्वरुप स्पष्ट की उत्पादन और पूर्ति बाजार शक्ति के अनुसार नहीं हो सकती।
- हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कृषि व्यवस्था पसंद नहीं थी क्योंकि ऐसी व्यवस्था को अपनाने से हमारे देश के अधिकांश लोगों को अपनी स्थिति सुधारने का अवसर ही नहीं मिल पाता
समाजवादी समाज इन तीनों प्रश्नों के उत्तर पूर्णतया भिन्न तरीके से देता है
- सरकार ही यह निर्णय करती है की वस्तुओं का उत्पादन तथा वितरण किस प्रकार किया जाए सिद्धांत यह माना जाता है कि समाजवाद में वितरण लोगों की आवश्यकता के आधार पर होता है उनकी क्रम क्षमता के आधार पर नहीं।
- इसके विपरीत एक समाजवादी राष्ट्र अपने सभी नागरिकों को नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराता है समाजवादी व्यवस्था में निजी संपत्ति का कोई स्थान नहीं होता क्योंकि प्रत्येक वस्तु राज्य की होती है उदाहरण के लिए चीन और क्यूबा में अधिकतर आर्थिक गतिविधियां समाजिक सिद्धांत द्वारा निर्देशित होती है।
- अधिकांश अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था हैं अर्थात सरकार तथा बाजार एक साथ 3 प्रश्नो के उत्तर देते है, कि किस प्रकार उत्पादन हो तथा किस प्रकार वितरण किया जाए।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था में बाजार उनकी वस्तुओं और सेवाओं को सुलभ करता है जिसका वह अच्छा उत्पादन कर सकता है तथा सरकार उन आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को सुलभ कराती है जिंहें बाजार सुलभ कराने में विफल होता है ।
- औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1948 तथा भारतीय संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों का भी यही दृष्टिकोण है।
- वर्ष 1950 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में योजना आयोग की स्थापना की गई इस प्रकार पंचवर्षीय योजनाओं के युग का सूत्रपात हुआ।
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पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य
- पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य : समृद्धि, आधुनिकरण, आत्मनिर्भरता और समानता।
- इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक योजना में इन लक्ष्यों को एक समान महत्व दिया गया है सीमित संसाधनो के कारण प्रत्येक योजना में ऐसे लक्ष्यों का चयन करना पड़ता है जिनको प्राथमिकता दी जाती है।
- हां, योजनाकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि जहां तक संभव चारों उद्देश्यों में कोई अत विरोध ना हो।
#योजना क्या है
- योजना व्याख्या करती है कि किसी देश के संसाधनों का प्रयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए योजना के कुछ सामान्य तथा कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं जिनको एक निर्दिष्ट समय अवधि में प्राप्त करना होता है।
- भारत में योजनाएं 5 वर्ष की अवधि की होती है और इसे पंचवर्षी योजना कहा जाता है यह शब्दावली राष्ट्रीय नियोजन के अग्रणी देश पूर्व सोवियत संघ से ही ली गई है
- हमारी योजना के प्लेटफार्म में केवल 5 वर्ष की योजना अवधि में प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य का उल्लेख नहीं किया गया अभी तो उन में आगामी 20 वर्षों में प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों का भी उल्लेख होता है इस दीर्घ आत्मिक योजना को परी अध्यात्मक योजना कहते हैं
- हमारी पंचवर्षीय योजनाएं यह नहीं बताती की प्रत्येक वस्तु और सेवा का कितना उत्पादन किया जाएगा यह ना तो संभव है और ना ही आवश्यक (पूर्व सोवियत संघ ने यह कार्य करने का प्रयास किया था और वह पूरी तरह विफल रहा) अतः इतना ही पर्याप्त है की योजनाएं उन्हीं क्षेत्र को के विषय में स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करें जिन्हें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो जैसे विद्युत उत्पादन और सिंचाई आती।
- शेष को बाजार पर छोड़ दिया जाना ही अधिक उचित है।
महालनोबिस भारतीय योजनाओं के निर्माता
- हमारी पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण में अनेक प्रसिद्ध विचारकों का योगदान रहा है उनमें साख्यिकीविद्, प्रशांत चंद्र महालनोबिस का नाम उल्लेखनीय तृतीय पंचवर्षीय का विकासात्मक योजना में एक अति महत्वपूर्ण योगदान है।
- योजना का काम सही मायने में तृतीय पंचवर्षीय योजना से प्रारंभ हुआ
- इसमें भारतीय योजना के लक्षणों से संबंधित आधारित विचार दिए गए हैं
- यह योजना महालनोबिस के विचारों पर आधारित थी इस अर्थ में उन्हें भारतीय योजना का निर्माता माना जा सकता है।
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